Sugarcane Farming (गन्ने की खेती)

Sugarcane Farming

आज हम जानेगे की Sugarcane Farming गन्ने की खेती कैसे करते है, और हम समझेंगे कि Sugarcane Farming गन्ने की खेती करने में क्या क्या परेशानियां आती है और हमें क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए। किस ऋतु में इसका उत्पादन होता है

गन्ना की खेती (Sugarcane Farming)

गन्ना की खेती एक नगदी फसल है भारत को गन्ना उत्पादन में दूसरा स्थान प्राप्त है गन्ने का ज्यादातर जूस निकालर पिया जाता है ये सेहत के लिए भी लाभदायक है व इसके रस से गुड़ चीनी शक़्कर व् शराब का उत्पादन भी मुख्य रूप से किया जाता है इस पर मौसम का ज्यादा प्रभाव नही होता है इसलिए यह एक सुरक्षित खेती है इसलिए अधिक किसानो की यह पसंदीदा फसल भी है पर अधिक गर्मी व सर्दी का अधिक नुकसान नहीं होता है इसके इसके लिए जल निकास वाली भूमि जरूरी है अधिक जल भराव के कारण गन्ने फसल खराब हो सकती है PH 6.5 से 7.5 वाली भूमि में गन्ना उत्पादन बहुत अच्छा होता है

भूमि को तैयार करना

गन्ने की खेती के लिए सबसे पहले भूमि को तैयार किया जाता है, भूमि तैयार करने के लिए जमीन की गहरी जुताई कर ली जाती है जिससे पुरानी फसल के सारे अवशेष मिट्टी में मिलकर खाद बन जाते हैं तथा गोबर की खाद की गाड़ियां 12 से 15 प्रति हेक्टर डाली जाती है। इसके बाद गोबर की खाद को खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिलाया जाता है गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद भूमि में नमी बनाने के लिए उसमें पानी लगा दिया जाता है मिट्टी को अच्छी तरह सूख जाने के बाद उसके अंदर रोटावेटर लगा दिया जाता है उसके बाद खेत को समतल कर दिया जाता है। उसके बाद गन्ने की बुवाई की जाती है।

गन्ने की बुवाई

गन्ने की बुवाई से पहले खेत में NPK का छिड़काव करना चाहिए गन्ने के बिज़्ज़ो बुवाई नम मिट्टी में की जाती है इसलिए उसे बोने के बाद जल्दी पानी की जरूरत नहीं होती है इस फसल को गर्मियों में सप्ताह में एक बार पानी जरूर देना चाहिए व् सर्दियों में 15 से 18 दिनों में एक बार पानी जरूर देना चाहिए इस फसल में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक व रासायनिक दोनों तरीकों से होता है फसल बोने के 4 से 5 माह खरपतवार नियंत्रण किया जाता है प्राकृतिक विधि के द्वारा महीने में दो बार निराई गुड़ाई करनी चाहिए वह रसायनिक विधि द्वारा या में 24डी इस्तेमाल करना चाहिए

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गन्ने में लगने वाले रोग व् रोकथाम

Sugarcane Farming तथा गन्ने की खेती में कई प्रकार की बीमारियां तथा रोग पनप सकते हैं, चलिए हम जानते हैं कि गन्ने की खेती में क्या-क्या बीमारियां बनती हैं तथा क्या-क्या रोग लगा सकते हैं और हम उनका निवारण किस प्रकार करेंगे।

1. गन्ने का लाल सड़न रोग

यह रोग कोलेलेटोट्राचीम फालकेटम नामक फंफूद से होता है इसके कारण पौधे का विकास कम हों जाता है

उपचार

गन्ने के बीजो को बुवाई करने से पहले किसी पारायुक्त कवकनासी जैसे एगलाल के 0.25 प्रतिसत्त घोल से उपचार करना चाहिए।

2. विल्ट या उकठा रोग

यह रोग फ्यूजेरियम सेकराई नामक फंफूदी द्वारा होता है इस रोग के लक्षण मानसून में व् उसके बाद पोधो पर दिखाई देते है इस रोग के कारण गन्ना अन्दर से खोखला हो जाता है फिर गन्ने में पीलापन दिखने लगता है इस कारण गन्नो का भार एकदम या बहुत कम हो सकता है

उपचार

रोग प्रतिरोधी प्रजातियो का उपयोग करना चाहिए। फसल चक्र अपनाये। गन्ना काटने के औज़ारो को साफ़ रखे। खेत के आस पास के रोग कारको को नस्ट कर दे।

3. समट या कंडवा रोग

इसके फूटने से काला पावडर निकलता है जिसमे फंफूद के बीजाणु होते है पौधे व् जमीन पर फेल जाते है यहीं बीजाणु आगे निकल रहीं दूसरी गन्ने की फसल में द्वितीयक संक्रमण करने का कारण बनते है इस कारण गन्ने की संख्या व् रस की मात्रा में कमी आ जाती है।

उपचार

इस रोग के लिए कोई रासायनिक उपचार नहीं है इससे बचाव के लिए कंडुआ बचाव के लिए कंडुआ रहीत बीज बुआई के लिए प्रयोग करना चाहिए।

गन्ने की बुवाई करने का समय (Sugarcane Farming Time)

क्या आपको पता है कि Sugarcane Farming भारत में अलग-अलग समय में की जाती है अगर हम दक्षिण भारत में देखें तो इसको बोने का समय अलग होता है, तथा उत्तर भारत में इसकी बुवाई तथा कटाई का समय अलग होता है हम यहां पर उत्तर भारत में किस समय इस फसल को बोया जाता है उसे पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

उत्तर भारत में मुख्यतः फरवरी -मार्च में गन्ने की बसंत कालीन बुवाई की जाती है गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय ओक्टुबर -नवम्बर है। बसंत कालीन गन्ना 15 फरवरी मार्च में लगाना चाहिए। उत्तर भारत में गन्ने की बुवाई का विलम्बित समय अप्रैल से16 मई तक है।

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